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1997 से अभी तक लगातार वार्षिक वेतन वृद्धि नहीं मिल रहा है 

Legal Advice

1997 से लगातार न्यूनतम वेतनमान दिया जा रहा है। बिना किसी ठोस कारण के मेरे डी ए तथा अन्य तमाम लाभों को अवरूद्ध किया गया है। बहाना सर्विस बुक और पर्सनल फाइल का नहीं होना है। 

प्रश्न पूछा गया: बिहार से

यदि लगातार २५ वर्षों से सेवा अविवादित है और न्यूनतम वेतन दिए जाने का प्रमाण है तो सर्विस बुक न होने के आधार पर अन्य सेवा लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है। 

नियोक्ता का दायित्व होता है कि वह अपने कर्मचारी के सर्विस बुक एवं पर्सनल फाइल को रखे और उसे अद्यतन करे। मात्र सर्विस बुक और पर्सनल फाइल के न होने पर कर्मचारी को उसके विधिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। 

यदि आपकी नियुक्ति विधिक प्रक्रिया के तहत और सिविल पोस्ट पर हुई है तो पूरा वेतन एवं अन्य सेवा लाभों को अर्जित करना आपका विधिक और मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत किसी नागरिक को उसके प्राण (life) एवं दैहिक स्वतंत्रता से बिना किसी विधिक प्रक्रिया के वंचित नहीं किया जा सकता है। 

अनुच्छेद २१ के अंतर्गत “सम्मान के साथ जीने का अधिकार” एक मूल अधिकार है। कर्मचारी को पूर्ण वेतन न देना उसको गरिमा या सम्मान के साथ जीने से वंचित करना है। यदि बिना किसी विधिक कारण के पूर्ण वेतन नहीं दिया जाता है तो  कर्मचारी के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है अतः आप अनुच्छेद २२६ के अंतर्गत माननीय उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका योजित कर सकते हैं। 

अतः आप अनुच्छेद २२६ के अंतर्गत माननीय उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका योजित करें और पूर्ण वेतन दिए जाने की मांग करें। यदि २५ वर्षों तक सेवा का रिकॉर्ड है और वर्तमान पद पर विधिवत नियुक्ति हुई है तो आप पूरा वेतन और अन्य सेवा लाभ जैसे- पदोन्नति, पेंशन, वित्तीय स्तरोन्नयन (ACP), चिकित्सा लाभ आदि पाने के अधिकारी हैं। 

सर्विस बुक और पर्सनल फाइल रखना नियोक्ता की जिम्मेदारी होती है।  नियोक्ता अपने किसी त्रुटि के लिए आपको विधिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है। 

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Shivendra Pratap Singh

Advocate

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With nearly two decades of experience as a practicing lawyer in Lucknow, I have been actively representing clients before the High Court of Judicature at Allahabad, its Lucknow Bench, as well as District Court since 2005.

My legal expertise spans across criminal law, matrimonial disputes, service matters, civil litigation, and property-related cases.

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